मशरूम के इस मॉडल से खड़ा किया 50 लाख का व्यवसाय

आपने कई बार अखबारों और विज्ञापनों में पढ़ा होगा कि स्वास्थ्य के लिए बेहद सतर्क लोग कुकुरमुत्ता (कवक) यानि मशरूम (Mushroom) को निरंतर इस्तेमाल में लेते हैं। ऐसे ही अखबारों में छपी हेड-लाइन से प्रभावित होकर हरियाणा के 18 वर्षीय किसान विकास वर्मा (Vikas Verma) ने भी मशरूम की खेती करने के बारे में विचार बनाया। लेकिन शुरुआत में कृषि में काम आ रही आधुनिक विधियों का कोई ज्ञान ना होने की वजह से, पहले ही साल कम उम्र में ही विकास को 14 लाख रुपए का नुकसान झेलना पड़ा। इतना बड़ा नुकसान किसी भी युवा किसान का हिम्मत तोड़ने के लिये काफी साबित होता है, लेकिन विकास वर्मा ने ऐसी परिस्थितियों में अपने खेत और मशरूम की खेती उगाने की प्रक्रिया में कुछ संस्थागत बदलाव किए और उसी की बदौलत आज वह हर साल 50 लाख रुपए तक मुनाफा कमा पा रहे हैं। विकास बताते हैं कि आज उनके द्वारा अपनाई जा रही तकनीक को, उनके गांव एवं आसपास के जिलों में कई किसान भाई सीखने की कोशिश कर रहे हैं और कुछ लोग तो काफी सफल भी हो गए हैं। एक किसान परिवार में जन्मे विकास, बारहवीं कक्षा के बाद अपने दादा और पिता की तरह परंपरागत कृषि प्रणाली से उगाने वाले गेहूं, बाजरा और दूसरे धान की फसल से अलग हटकर कुछ करने की सोच रखते थे। इसी सोच पर काम करते हुए इन्होंने अपने परिवार वालों को उच्च शिक्षा छोड़कर कृषि में पूरा ध्यान लगाने की बात बताई, शुरुआत में कुछ नोकझोंक के बाद परिवार वाले विकास के समर्थन के लिए राजी हो गए।


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जब अपनी पढ़ाई के दौरान ही विकास अपने गांव से चंडीगढ़ जा रहे थे, तभी रास्ते में ही सोनीपत के एक क्षेत्र में इन्होंने मशरूम की खेती होती देखी और जब पूछताछ करने की कोशिश की तो पता चला कि वह किसान मशरूम की खेती से काफी अच्छा मुनाफा कमा पा रहा है। लेकिन, विकास को जानकर आश्चर्य हुआ कि आखिर क्यों दूसरे कई किसान इस क्षेत्र में मशरूम नहीं ऊगा रहे हैं, जब की एक किसान इतना मुनाफा कमा पा रहा है। इस सवाल का जवाब विकास को खुद ही मिल गया जब उन्होंने पहले ही साल में परंपरागत रूप से मशरूम की खेती की और उन्हें बड़ा नुकसान झेलने को मिला। साल 2014 में राज्य सरकार के कृषि विभाग के अंतर्गत कार्य करने वाले कृषि विज्ञान केंद्र से ट्रेनिंग लेकर, विकास भी मशरूम की खेती के उत्पादन में हाथ आजमाने की तैयारी कर चुके थे। आज विकास 'कंपनी कानून 2013' के तहत रजिस्टर्ड 'वेदांता मशरूम प्राइवेट लिमिटेड' (Vedanta Mushrooms (opc) Private Limited) नाम की एक सफल कंपनी भी चलाते है, जोकि मशरूम से तैयार होने वाले उत्पादों को सही दामों में लोगों तक पहुंचाने में सफल रही है। विकास ने बताया कि कृषि कैरियर के शुरुआती दिनों में, घर में जमा पैसों से और बैंक से लोन लेकर उन्होंने 14 लाख रुपए की राशि इकट्ठा की, इस पैसे की मदद से उन्होंने मशरूम उगाने के लिए इस्तेमाल होने वाले बैग और एक यूनिट की स्थापना की, लेकिन जल्दबाजी में किए गए प्रयासों से विकास को बुरी तरह धक्का लगा। जब विकास ने अपनी खेती की विफलता के बारे में पूरा रिसर्च किया, तो पता चला कि उनके द्वारा इस्तेमाल किया गया कंपोस्ट खाद मशरूम की खेती के लिए बिल्कुल भी लाभदायक नहीं रहा और इसी कंपोस्ट खाद की वजह से विकास को इतना अधिक नुकसान उठाना पड़ा। जब विकास ने अपने खेत में जैसे-तैसे तैयार हुई कुछ मशरूम को बाजार में बेचने की कोशिश की, तब भी उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ा। सौ रुपये प्रति किलो की मांग रखने वाले विकास को कोल्ड स्टोरेज फैसिलिटी ना होने की वजह से, अपनी मेहनत से तैयार की गई फसल को औने पौने दामों में पचास रुपए प्रति किलो की दर से बेचना पड़ा।


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अपनी गलतियों से सीख कर उन्होंने कृषि विभाग के कुछ वैज्ञानिकों की मदद ली और मशरूम की खेती से कई दूसरे प्रकार के वैल्यूएटेड उत्पाद बनाने की शुरुआत की। दूसरे सीजन के शुरुआती दिनों में विकास ने खेत से तैयार मशरूम को पहले सुखाकर उसका पाउडर बनाया और फिर उससे कई प्रकार के स्वास्थ्यवर्धक पेय-पदार्थ (Health drinks), बिस्कुट और पापड़ जैसे मार्केट में बिकने वाले प्रोडक्ट तैयार किए। विकास बताते है कि मशरूम से तैयार की गई हेल्थ ड्रिंक टीबी, थायराइड और ब्लड प्रेशर से जूझ रहे मरीजों के लिए काफी लाभदायक साबित हुआ, इसी वजह से जहां वह 100 रुपए प्रतिकिलो में मशरूम बेचने को लेकर संघर्ष कर रहे थे, वही उनके द्वारा तैयार उत्पाद एक हजार रुपए प्रति किलो की दर से बाजार में आसानी से बिक रहे थे। इसी एक साल में विकास ने कुल 35 लाख रुपए का मुनाफा कमाया। विकास ने बताया कि पहले उन्होंने पंजाब के लुधियाना शहर में कई बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी से कॉन्ट्रैक्ट जोड़ा और आज वह दिल्ली में रहने वाले मशरुम प्रेमियों की मांग को भी पूरा कर रहे हैं।


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एक बार खुद को सफलता मिलने के बाद विकास ने अपने ज्ञान को दूसरे किसानों तक पहुंचाने के लिए भी काफी प्रयास किए। विकास वर्मा का मानना है कि आप केवल तभी विचारों से बड़े और अच्छे व्यक्ति बन सकते है, यदि आप अपने समाज के बुरे समय में भी उनके साथ खड़े रहे और उन्हें नई वैज्ञानिक विधियों से मदद करने की सोच रखें। पिछले 6 सालों में कुल 15000 से ज्यादा किसानों को मशरूम उत्पादन की नई तकनीक के माध्यम से फायदा पहुंचा चुके विकास बताते हैं कि, वर्तमान में वह कई खाद्य प्रसंस्करण संस्थाओं (Food processing organisation) में लगभग 3000 किसानों को प्रत्यक्ष रूप से मशरूम उगाने की ट्रेनिंग दे रहे है। हालांकि विकास इस दुविधा को भी समझते हैं कि उन्ही की मेहनत की बदौलत आने वाले समय में मशरूम का उत्पादन बढ़ने से किसानों को होने वाले मुनाफे में कमी आ सकती है, इसीलिए वह भारत के दूसरे राज्यों और अलग-अलग हिस्सों में मशरूम से तैयार उत्पादों के लिए नए मार्केट की खोज की शुरुआत भी कर चुके है।


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पिछले साल 2021 में ही उन्होंने अपना कस्टमर बेस बनाना भी शुरू किया है और अब स्वास्थ्य क्षेत्र में काम कर रही कई बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियां विकास से तैयार उत्पाद सीधे ही खरीद कर विदेशों में बेच रही है। अपने पुराने दिनों को याद करते हुए विकास बताते है कि शुरुआत में उनके पास किसी प्रकार की कोई वित्तीय सहायता नहीं थी, लेकिन फिर भी लोन लेकर उन्होंने कृषि क्षेत्र में कुछ नया करने की सोच रखते हुए एक बार विफलता मिलने के बाद भी आज वह अपने आसपास के क्षेत्र के सबसे सफलतम किसानों में गिने जाते है।


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आशा करते हैं कि हमारे किसान भाइयों को विकास वर्मा जैसे प्रगतिशील किसानों की कहानी सुनकर, कृषि से जुड़ी नई तकनीकों को इस्तेमाल करने की प्रेरणा मिली होगी और भविष्य में आप भी ऐसे ही प्रगतिशील किसान बनकर, स्वास्थ्यवर्धक लोगों की मांग को पूरा करने में अपना पर्याप्त सहयोग प्रदान करने के अलावा, अच्छा मुनाफा कमाने में भी सफल हो पाएंगे।